यदि एक संन्यासी और गृहस्थ अपने गुरु या ईश्वर के प्रति सामान भाव रखते है तो दोनों में से किसकी मुक्त होने की सम्भावना अधिक है? ऐसे सवाल कई बार मन को दुविधा में डाल देते है। एक तरफ मनुष्य अपने कर्तव्यों के पालन के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहता है तो दूसरी तरफ हर मनुष्य के मन में जीवन के इस चक्र से मुक्त होने की चाह उसे दुविधा में डाल देती है। जीवन के ये सूत्र आपको गृहस्थ और संन्यास के द्वंद्व से निकालकर आपके जीवन को एक नई दिशा प्रदान करेंगे।
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