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जब पता चलता है कि Iskcon में बहुत कुछ गलत प्रकार से किया जाता है - तिलक, भोग अर्पण की विधि इत्यादि और भक्त में गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में आश्रय लेने की इच्छा जागृत होती है, तो समान्यता देखा जाता है कि उसे Iskcon गुरु त्याग करने के अपराध का भय होता है ।
इस विषय पर महाराज जी समस्त वैष्णवों के कल्याण हेतु संशयों का निवारण कर रहे हैं ।
By SRI SRI 108 SHACHINANDAN JI MAHARAJजब पता चलता है कि Iskcon में बहुत कुछ गलत प्रकार से किया जाता है - तिलक, भोग अर्पण की विधि इत्यादि और भक्त में गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में आश्रय लेने की इच्छा जागृत होती है, तो समान्यता देखा जाता है कि उसे Iskcon गुरु त्याग करने के अपराध का भय होता है ।
इस विषय पर महाराज जी समस्त वैष्णवों के कल्याण हेतु संशयों का निवारण कर रहे हैं ।