रीछ इत्यादि सहित समस्त वानरी सेना की वन्दना। पशु पक्षी देवता मनुष्य असुर इत्यादि की वन्दना। शुकदेव सनकादि नारद इत्यादि समस्त मुनियों की वन्दना। विशेष वन्दना श्रीमाता सीता जीकी , श्रीविद्या की - जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुना निधानकी।। ताके जुगपद कमल मनावों।जासु कृपा निरमल मति पावों।। जनकसुता और जानकी शब्दों में अन्तर। इस चौपाईमें गायत्रीमंत्र का समावेश है। जानकी गायत्रीका एक नाम है। "निरमल मति पावों" - यही प्रार्थना गायत्रीमंत्र में भी है और श्रीमद्देवीभागवत के प्रथम श्लोक में भी। पांचवीं चौपाई में मानसके सभी सात काण्डों का बीज निहित है। दोहे में सीता-राम का अभेद।