राम से बडा़ राम का नाम। ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि। रामचरित सत कोटि महँ लिय महेश जिय जानि।। ब्रह्माजी ने सौ करोण श्लोकों के रामायण की रचना किया था। रामायन सत कोटि अपारा। वाल्मीकिना च यत्प्रोक्तं रामोपाख्यानमुत्तमम्। ब्रह्मणा चोदितं तच्च शतकोटि प्रविस्तरम्।। उस पर तीनों लोक अपना अपना अधिकार जताने लगे। झगडा़ बढा़ तो भगवान् शङ्कर के पास गये। शङ्करजी ने तीनों में बराबर बांटा तो एक श्लोक अनुष्टुप शेष रह गया। अनुष्टुप में 32 अक्षर होते हैं। उसमें से भी दस दस अक्षर तीनों लोकों को बांट दिये अब दो अक्षर शेष रहा। वह था रा और म। दो में तीन का भाग हो नहीं सकता था। अतः शङ्करजी ने कहा कि यह हमारा न्यायशुल्क या माध्यस्थम शुल्क अथवा पारिश्रमिक है। इस प्रकार सौ करोण श्लोकों में से रा और म को चुनकर शङ्करजी ने अपने पास रख लिया।