दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

मानस, बालकाण्ड, 30.1-3 रामचरित मानसकी रचनाका उद्देश्य


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बार बार कहने सुनने से कठिन विषय भी समझमें आ जाता है। फिर उसको अपने शब्दोंमें लिखनेसे शंकायें प्रकट होती हैं और उनका समाधान होता है। इसलिये गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं- तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा।। भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरे मन प्रबोध जेहिं होई।। मंगलाचरण में आरम्भ में ही कह चुके हैं - स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati