दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

मानस, बालकाण्ड,२०-२१


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वाक्योंकी शोभा र और म से है। एक क्षत्र है दूसरा मुकुटमणि। नाम और रूप दो उपाधियां हैं ईश्वरकी। नाम और रूप परस्पर अभिन्न हैं। फिर भी रूप नामके अधीन है। नाम लेने पर कोई न कोई रूप मानसपटल पर उपस्थित होता है। यह जगत नाम रूपात्मक है। इसलिये, राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहरहु , जौं चाहसि उजियार।।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati