कलियुग में नामजप ही सर्वोत्तम साधन है। सत्ययुगमें ध्यान, त्रेतामें यज्ञ, द्वापर में पूजन की प्रधानता है। किन्तु कलियुग में इतना विक्षेप है कि ध्यान लगता नहीं, यज्ञ और पूजन इत्यादि में सामग्री और शास्त्रप्रक्रिया के पालन की अनिवार्यता होती है, अतः वह भी नहीं हो पाता। केवल नाम जप ही एकमात्र ऐसा उपाय है जो विना किसी बाह्य साधन के हो सकता है।"नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। रामनाम अवलम्बन एकू।।" रामका नाम नृसिंह भगवान् है, कलियुग हिरण्यकशिपु है और नामजप करने वाला प्रह्लाद है। रामनाम नरकेसरी कनककशिपु कलिकालु। जापक जन प्रह्लाद जिमि पालिहि दलि सुरसालु।।