12.29.2015 - By Samskrita Bharati
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दनुते गिरिवर-विन्ध्य-शिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते । भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥