मेड़ता के राजकुल में पली-बढ़ी, मेवाड़ के राजवंश में ब्याह के आई एक निर्भय, साहसी, सुदृढ़ चरित्र वाली, कृष्णभक्त मीराबाई को कौन नहीं जानता है! मध्ययुगीन पुरुषप्रधान समाज की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने वाली मीराबाई ने अपने देवर राणा विक्रमजीत तथा पुरे परिवार द्वारा अपने ऊपर किये गए अत्याचारों का अपने साहित्य द्वारा सारा भेद खोलकर रख दिया। हालाँकि इसकी सजा उन्हें अनेक तरह से सताकर दी गई। उन्हें मारने के भी बहुत उपाय किये गए किन्तु मीराबाई अपने कृष्ण भक्ति के पथ पर अडिग रही। राजकुल छोड़ दिया, मंदिरो में रहने लगी। माधुर्य भाव से श्रीकृष्ण की भक्ति में लीं रहते हुए असंख्य पदों, गीतों से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है इन्होंने।