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जब हम ख़ुद के लिए "मेरा वक़्त" या "मेरे पाँच मिनट" निकालने लगते हैं तब हमें उनका महत्व समझमें आने लगता है। हमारे वे पल ख़ास होते हैं। कोई किताब पढ़ना, किसी से बात करना, चाय की चुस्कियाँ लेना या ख़ुद के साथ एकांत में समय बिताना। तो क्या आज आप उन पाँच मिनटों को मेरे साथ बाँटना चाहेंगे?
Related listen: "वक़्त मिलता नहीं निकालना पड़ता है" -
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Instagram: alpanabapat
Blog: Mothers Gurukul
Email: [email protected]
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जब हम ख़ुद के लिए "मेरा वक़्त" या "मेरे पाँच मिनट" निकालने लगते हैं तब हमें उनका महत्व समझमें आने लगता है। हमारे वे पल ख़ास होते हैं। कोई किताब पढ़ना, किसी से बात करना, चाय की चुस्कियाँ लेना या ख़ुद के साथ एकांत में समय बिताना। तो क्या आज आप उन पाँच मिनटों को मेरे साथ बाँटना चाहेंगे?
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