अज्ञेय की ‘मुस्लिम-मुस्लिम भाई-भाई’ शरणार्थी समस्या पर आधारित एक वैचारिक कहानी है। इसमें भावुकता से पिंड छुड़ाकर यथार्थ को सही मायने में आंका गया है। यह कहानी सांप्रदायिक उन्माद की गहराती विषाक्त चेतना का यथार्थ चित्रण करने के साथ-साथ विभाजन की कोख से फूट पड़ी दारुण एवं जटिल स्थितियां तथा छार-खार होती हुई मानवीय संबंधों एवं विश्वास मूल्यों का करुण गाथा भी प्रस्तुत करती है। हत्याओं, लूटपाट के परिवेश में समग्र देश, विवेक, संतुलन व मर्यादा को तितर-बितर करके जिस विष में डूबा था, उसका दंश आज तक मिटा नहीं।