Never Born, Never Died - हिन्दी

मूढ़ कौन, अमूढ़ कौन ? (अष्‍टावक्र : महागीता - 73)


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अष्टावक्र उवाच।

अकुर्वन्नपि संक्षोभात्‌ व्यग्रः सर्वत्र मूढ़धी।

कुर्वन्नपि तु कृत्यानि कुशलो हि निराकुलः।। 234।।
सुखमास्ते सुखं शेते सुखमायाति याति च।
सुखं वक्ति सुखं भुंक्ते व्यवहारेऽपि शांतधीः।। 235।।
स्वभावाद्यस्य नैवार्तिलोकवदव्यवहारिणः।
महाहृद इवाक्षोभ्यो गतक्लेशः सुशोभते।। 236।।
निवृत्तिरपि मूढ़स्य प्रवृत्तिरुपजायते।
प्रवृत्तिरपि धीरस्य निवृत्तिफलभागिनी।। 237।।
परिग्रहेषु वैराग्यं प्रायो मूढ़स्य दृश्यते।
देहे विगलिताशस्य क्व रागः क्व विरागता।। 238।।
भावनाभावनासक्ता दृष्टिर्मूढ़स्य सर्वदा।
भाव्यभावनया सा तु स्वस्थयादृष्टिरूपिणी।। 239।।
अकुर्वन्नपि संक्षोभात्‌ व्यग्रः सर्वत्र मूढ़धीः।
कुर्वन्नपि तु कृत्यानि कुशलो हि निराकुलः।।

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Never Born, Never Died - हिन्दीBy Oshō - ओशो