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सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलियुग - प्रत्येक युग में प्रत्येक सम्प्रदाय में एक ही प्रकार से भक्ति होती है ।
सम्प्रदाय में सभी भक्त एक ही प्रकार से भगवान् की उपासना करते हैं, अपने आचार्यों के ग्रन्थ पढ़ते हैं, उसी के अनुसार जीवन यापन करते हैं और सिद्धि प्राप्त करते हैं ।
किन्तु Iskcon आदि संस्थाओं में मना किया जाता है कि हम गौड़ीय आचार्यों के ग्रन्थ पढ़ने के योग्य नहीं हैं ।
क्या यह वास्तविकता है ?
क्या गौड़ीय वैष्णवों को गौड़ीय अचार्यों के ग्रन्थ पढ़ने के लिए कोई योग्यता चाहिए ??
By SRI SRI 108 SHACHINANDAN JI MAHARAJसतयुग, द्वापर, त्रेता, कलियुग - प्रत्येक युग में प्रत्येक सम्प्रदाय में एक ही प्रकार से भक्ति होती है ।
सम्प्रदाय में सभी भक्त एक ही प्रकार से भगवान् की उपासना करते हैं, अपने आचार्यों के ग्रन्थ पढ़ते हैं, उसी के अनुसार जीवन यापन करते हैं और सिद्धि प्राप्त करते हैं ।
किन्तु Iskcon आदि संस्थाओं में मना किया जाता है कि हम गौड़ीय आचार्यों के ग्रन्थ पढ़ने के योग्य नहीं हैं ।
क्या यह वास्तविकता है ?
क्या गौड़ीय वैष्णवों को गौड़ीय अचार्यों के ग्रन्थ पढ़ने के लिए कोई योग्यता चाहिए ??