नींद का अर्थ है दोनों आँखों का आराम । प्रकृति में ये एक ऐसी ज्ञानेंद्रिय है जिसका महत्व वाहय ज्ञान प्राप्त करने में सबसे अधिक है । इसी के माध्यम से रूप रंग आकार को अंदर चित्त में संग्रह करते हैं । अंदर की आँखें जब थकती हैं तब वह पलकों को ढँक लेती हैं और उसे थोड़े समय के लिए आराम दे देती हैं । इसी को हम निद्रा कहते हैं । यही अवस्था योगियों ने ध्यान में पैदा करने की कोशिश की । उनका कहना था कि यदि बैठ करके ही इन पलकों को बंद करके उन सभी रूप रंग एवं आकार को अंदर जाने से रोक दिया जाये तो चित्त शांत हो जाएगा ।
मेरे अनुभव में आँखों की अंदर की सूक्ष्म कोशिकाओं में रूप रंग एवं आकर के ग्रहण करने की आदत सी पड़ जाती है । इसके कारण आँखें हर समय कुछ ना कुछ माँगती रहती हैं । जैसे आजकल सोशल मीडिया को हम सभी देखते रहते हैं । आँखें यदि तनाव में हैं तो चित्त स्थिर नहीं हो सकता है । और यदि ज्ञानात्मक माध्यम से सीधा चित्त को स्थिर करने का प्रयास किया जाय तो आंखों की बुरी आदत को ठीक भी किया जा सकता है ।
कहने का मूल अर्थ यह है कि आँखें यदि तनावरहित हो जायें तो चित्त शांत रहेगा अन्यथा नहीं ।
संसार में ऐसे कुछ प्रमाण हैं जो कई वर्षों से सोये ही नहीं । उन्हें नींद ही नहीं आती है और साथ साथ ऐसे कोई गंभीर बीमारी के लक्षण उनमें नहीं दिखते हैं ।
किंतु मेरे अनुभव में यदि पुतलियों को आराम ना इला तो मस्तिष्क को अधिक दिनों तक चलाया नहीं जा सकता है । यहाँ यह भी संभव है कि पलकें भले ही बंद ना होती हों किंतु अंदर की पुतलियाँ आराम की अवस्था में हो ।