बहुत दिनों से फूल धरे हैं
घर में टेबल की छत्ती पर
मुरझाए से सिकुड़े सारे
जैसे मेरा मन मुरझाया,
मेरे मन के मुरझाने पर
तुम तो पानी दे आँखों का
कर देती हो ताजा सब कुछ,
फूलों को बोलो क्या दूँ मैं ?
कैसे ताजा करूँ कहो अब
कैसे उनको यह बतलाऊँ,
मेरी आँखों के देखे से
नज़र लगी तो मुरझाता सब,