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Power Of Positivity


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अमेरिकी लेखिका ग्रेचेन रुविन हैप्पीनेस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। रुबिन 'सेल्फ इनसाइट... नाम की किताब का हवाला देते हुए कहती हैं कि लोग किसी भी बात पर बहस कर सकते हैं। अगर उन्हें कहा जाए कि 'ए' सही है, तो उसके समर्थन में तर्क दे सकते हैं। अगर कहा जाए कि 'ए' का विरोधी सही है, तो वे उसी सफाई से उस पर भी बहस करने बैठ जाएंगे।
हैप्पीनेस प्रोजेक्ट के शोध में सामने आया कि लोग सुबूतों पर जोर देते हैं और ये परिकल्पना, उसके बिल्कुल उलट है कि लोग जानकारियों के ऊपर रायशुमारी को प्राथमिकता देते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी से पूछें कि क्या वह कभी बाहर घूमने वाला व्यक्ति रहा है तो वह बैठकर उस समय की कल्पना करने लगेगा, जब वह मिलनसार हुआ करता था। अगर उसी व्यक्ति से पूछा जाए कि क्या वो शर्मीला था, तो वह उसके बारे में भी सोचने लगेगा।
आप अपनी जिंदगी में इस थ्योरी को लागू कर सकते हैं। जैसे जब ख्याल आए कि जीवनसाथी में बिल्कुल दिमाग नहीं है, तब दिमाग
भी उसके समर्थन में तर्क देने लगता है। आप बस करें इतना कि उसी समय उल्टा सोचना शुरू कर दें। जैसा मेरा जीवनसाथी बुद्धिमान है। तब दिमाग में इसके समर्थन में विचार आने लगेंगे। इससे आप वाकई में अपनी राय में बदलाव महसूस कर सकते हैं। ये थ्योरी बताती है कि कैसे खुशमिजाज लोग खुशनुमा माहौल में रहते हैं या उसे बना देते हैं।
हमें अक्सर लोगों से वैसी प्रतिक्रिया मिलती है, जो हमारे दिमाग में पहले से बनी उनकी छवि को और मजबूत करती है। लेकिन ऐसा क्यों है? अगर आप हर वक्त बुरा बताँव करेंगे तो मुमकिन है कि लोग आपकी मदद न करें, जिसका परिणाम ये होगा कि आपका रवैया और बुरा होता जाएगा। इसके उलट अगर आप माहौल खुशनुमा बनाएंगे तो लोग भी मदद करने को तैयार रहेंगे।
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