क्या अपने मूड को सहज रूप से नियंत्रित किया जा सकता है?
'मूड खराब है आपको अपने आसपास किसी न किसी से ये सुनने मिल ही जाता होगा। आखिर में गृह है? जीवन में लोगों का मूड भी होगा। ऐसी स्थिति में करते होंगे?
दरअसल हमारा मूड कला (आटे) की तरह होता है जब आप उसे आंखों से देखते या महसूस करते हैं, तभी उसके बारे में पता चल पाता है, पहले से नहीं विज्ञान भी हमारे मूड के बारे में कुछ ठीकठाक नहीं बना पाता कि यह कैसे काम करता है। मूड भावनाओं से जुड़ी हुई हमारे दिमाग की अवस्था है, लेकिन अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा स्थायी ज्यादा स्थिर भावनाओं की तरह ही मूड भी दिमाग के एमिग्डला वाले हिस्से में पैदा होता है, जहाँ विचारों को भावनात्मक रूप से समझा जाता है। मूड को बॉडी बलॉक बहुत गहराई से प्रभावित करती है, सोने-उठने में गड़बड़ी से भी यह खराब हो जाता है। इसका असर सेहत पर भी पड़ता है तो सेहत भी मूड पर असर डालती है। मेटाबॉलिज्म भी मूड से जुड़ा होता है, यह शारीरिक-मानसिक ऊर्जा पर असर डालता है।
कई लोगों को लगता है कि मूड औसतन रूप से हमारी भावनाओं का ही बेच है। पर विज्ञान के हिसाब से मूड बिल्कुल अलग है। इस बात के प्रमाण है कि कुछ लोग आमतौर पर यह चुनकर कि आगे किस गतिविधि में शामिल होना है, अपने मूढ
को सहया रूप से नियंत्रित करते हैं। लो फील करते हैं, तो खुद को उन चीजों में शामिल कर लेते हैं, जिससे उन्हें खु मिलती है, जैसे फिल्म देखना, घूमना आदि। और जब मूड ठीक हो जाता है, जोखि भरा काम करते हैं।
ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने पाया है ज्यादा डिप्रेशन के मरीजों में मूड को करने वाली प्रक्रिया होता है। अभी तक मूड बदलने के लिए परंपरागत उपाय ही रही है, जहां दवाएं दिमाग की केमिस्ट्री पर असर डालकर मूड सुधारती है। लेकिन लोग अब इस तरह दिमाग पर असर बना मूड बदलने के उपायों को और ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। शोध अध्ययन कहते हैं। खानपान मूड को बहुत ज्यादा प्रभावित कर है। सकारात्मक सोच के साथ पर ध्यान से मूड ठीक रखा जाता है।