पावर ऑफ पॉजिटिविटी
सकारात्मक लोगों की जिंदगी जल्द पटरी पर आ जाती है
अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमले के बाद किए गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण में सामने आया था कि कई दिनों तक हर अमेरिकी डर, गुस्से और में तनाव में था। इस हमले से चंद महीनों पहले शोध अध्ययन के लिए कुछ छात्रों का रेजिलियंस लेवल मापा गया। मतलब विपरीत परिस्थितियों से उबरने की उनकी क्षमता देखी गई। इस हमले के बाद दोबारा उन्हीं छात्रों का ये स्तर मापा गया। कुछ ने बताया कि उन्हें हवाई यात्रा करने से डर लग रहा है, तो किसी ने खुलकर तनाव को स्वीकार किया। इस शोध में सामने आया कि हमले के बाद तो सभी में तनाव का स्तर लगभग एक-सा था, लेकिन जिनको रेजिलियंस लेकल ज्यादा था, उनकी जिंदगी जल्दी पटरी पर आ गई। इन लोगों में मुख्य अंतर सकारात्मकता का था। यही उनकी सफलता का राज था। ऐसा नहीं है कि अंदर से खुशमिजाज लोगों को तनाव या दुख की अनुभूति नहीं होती। लेकिन वे जल्दी उबर जाते हैं। वहीं कुछ लोग तनाव या कफी सकारात्मकता भूल
जाते हैं। सवाल है कि क्या तकलीफ से दी उबरने की इस क्षमता को बढ़ाया जा सकता है? रेजिलियंस एक प्रक्रिया है और ये समय के साथ बढ़ती है। हमारी सकारात्मक सोच इसे बढ़ाने में मदद करती है। इसे पाने के लिए चंद उपाय करने होंगे। दिन में कुछ मिनट अपने आसपास की सकारात्मकता पर केंद्रित करें। शोध कहते हैं. कि इस तरह की आदत से तीन सप्ताह में दिमाग कमात्मकता खोजने का एक पैटर्न विकसित कर लेता है। अपने अंदर कुछ अच्छी आदते विकसित करें। इसकी तौर पर अभ्यास करके बढ़ाया जा सकता है।