।।१।।
प्रिय मिले जब से,
आई जीवन में उमंग,
फैल रही है जीवन में,
धीरे-धीरे प्रेम रंग ।
।।२।।
जान लिया मैंने भी तो,
प्रेम का अद्भुत रहस्य
दूर हो गयी जाने कैसे,
मेरे जीवन का आलस्य।
।।३।।
कैसे जाने वे आए,
हृदय में मेरे एकाएक,
हो उठा तन-मन पुलकित,
होठों से जब किया अभिषेक।
।।४।।
ले जायेगी जो मुझको,
मिली मुझे अब वे राहें,
पास आ गई मेरी मंजिल,
डाली जब अपनी बाँहे।
।।५।।
हर वो खुशियाँ पाई मैंने,
की थी जो - जो अभिलाषा,
बात दिलों की जान सका,
जब जानी प्यार की परिभाषा।
।।६।।
मैं ही मैं जीवन में था,
कितना कलुषित था इतिहास,
हुआ दूर अब सब तम मेरा,
आये जो वो मेरे पास।
।।७।।
जब से आए वो मेरे,
दिल के सूनेपन मे,
फूल कितने खिल गए,
हाय! मेरे इस जीवन में।
।।८।।
साथ का मेरे मत पूछो
साथ बहुत मैंने पाया
पर साथ मुझे उनके जैसा
कहाँ किसी का कब भाया।
।।९।।
चाह मुझे थी एक साथी की,
हुई तलाश पूरी उसकी,
रंगों-छन्दों में समाये जो,
बनें मूरत जो सुकवि की।
।।१०।।
जीवन का रूप सच्चा,
अब प्रतिपल लगने लगा है
रात-दिन आकर कोई
नित स्वप्न में हँसने लगा है।
।।११।।
साथ उनका मिला है जबसे,
छूटा सभी से वास्ता,
एक उन्हीं में जा बसी,
मेरी, असीम, अटूट आस्था।
।।१२।।
सारी जमी तो थी अपनी,
अब अपना हुआ आकाश,
नित-नित होने लगा अब,
मेरे जीवन का विकास।
।।१३।।
अपने होठों से जब-जब
उसने है मुस्काया
दिल के कोने-कोने में
मैंने उनको है पाया।
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