जात-पात पुछे ना कोई हरि को भजे सो हरि का होई' यह एक आंदोलन का नारा है जिससे पंचगंगा घाट से संत रामानंद जी ने दिया. उन्होंने राम भक्ति की सगुण और निर्गुण धारा को समान रुप से प्रचलित और प्रसारित किया. उसे जनजन तक पहुँचाया. उनसे जुड़ी एक किंवदंती है - द्रविड़ भक्ति उपजौ लायो रामानंद' रामानंद जी ने अपने समाज में व्याप्त हर कुरीति और विसंगति पर प्रश्न चिन्ह लगाया और उसे बदलने का मार्ग बताया. श्रीमठ जो पंचगंगा घाट पर है वो रामानंद जी की सहिष्णु और भक्ति आंदोलन का आरंभ बिंदु है. सनातन धर्म को सभी के लिए सुलभ और सरल करने का बहुत सार्थक प्रयास है. श्री राम राज्य की आधार नीति है. यह घाट इतिहास का संग्रह स्थल है. यहाँ रमण और स्नान यात्रा से मन की दुविधा दुर हो जाती है. यह घाट सनातन धर्म के सहिष्णु और मानवीय मूल्यों को धारण करता है. तभी तो यहाँ बिस्मिल्ला खां को हनुमान जी मिलकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं. कबीर जो मुस्लिम हैं पर हिन्दू गुरु से ज्ञान लेते हैं. और मुगल शासक को धर्म का मर्म समझाते हैं. धर्म जिसे आप मूर्ति पूजा और कर्मकांड तक ही सीमित समझते हैं वह धर्म का एक बहुत छोटा रुप है. धर्म है कर्म का सहयोगी, जीवन की एक कला, जो समय के साथ अपना रंग और रुप बदलती है पर उसका मर्म सदैव सभी का कल्याण होता है. सनातन धर्म का प्रतीक वाक्य वसुधैव कुटुबं कम् सदा से है. हम सनातनी सदा ही सभी के कल्याण में अपना कल्याण समझते हैं. तभी तो हजार वर्षों की गुलामी भी हमारे संस्कार और संस्कृति और सभ्यता को नष्ट नहीं कर पायी. हम सदा से थे और सदा रहेंगे सनातन समय के साथ और समय के बाद भी. हर हर महादेव.