कल थी काशी, आज है बनारस

रामबोला कैसे बना गोस्वामी तुलसीदास


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श्री राम-श्री राम जय राम जय जय राम. आज कथा है भक्त रामबोला की. यह कथा है श्री राम और कलियुग के तुलसीराम की. जो श्री राम को खोजते खोजते तुलसीराम से तुलसीदास बन गये. आज दुनिया उन्हें गोस्वामी तुलसीदास के नाम से याद करती है. उनकी रचना रामचरितमानस दुनिया के श्रेष्ठ महाकाव्यों में 46 वें स्थान पर है. यह कथा है मोहभंग से श्री राम शरण तक की. राजापुर गाँव में जन्में हुलसी और आत्मा राम के पुत्र जो दांतों के साथ एक वर्ष तक माँ के गर्भ में रहकर पैदा हुए जो रोते हुए नहीं श्री राम धुन को गाते हुए पैदा हुआ. जिस पर माता के लिए अपशकुन होने का दोष लगा. पिता ने त्याग दिया. चुनिया दासी माँ ने पाला रामबोला को. राम बोला का बचपन कष्ट भरा था. फिर महादेव की प्रेरणा से नरहरिदास ने रामबोला को खोजा और पालन पोषण किया. वेद ज्ञान दिया. राम कथा का वाचक बनाया. पर यह रामबोला जो गुरु से मिलकर तुलसीराम बन चुका था वो अभी भी सांसारिक मोह में फंसा हुआ था अपने जीवन लक्ष्य से दुर. 29 वर्ष में विवाह हुआ पर पत्नी का गौना नहीं हुआ. वो अपने मैके में रहती. तुलसी काशी में वेदपाठ करते. एक दिन पत्नी से मिलने की इच्छा हुई. गुरु आज्ञा से घर गये. पत्नी से मुलाकात के लिए इतने अधीर हुए रात्रि में यमुना को तैर पार किया. पत्नी के कक्ष में जा पहुंचे. घर चलने की जिद्द की. रत्नावली ने बहुत समझा पर नहीं माने तब पत्नी ने ब्रह्म ज्ञान दिया कि हाड़ मास की काया से जो आप इतना प्रेम कर रहे इसका रंच मात्र भी श्री राम को भजते तो भव सागर से पार हो जाते. यह सुन तुलसी मोह से जागे. उल्टे पैर घर भागे. घर पर पिता का शव था पुत्र के इंतजार में. अंतिम संस्कार कर घर त्याग कर तुलसीराम अब तुलसीदास बन गये. वो राम कथा का पाठ करने लगे अस्सी घाट पर काशी के. भक्तों की संख्या बड़ने लगी. फिर किसी राम भक्त प्रेत ने तुलसी जी को हनुमान जी के बारे में बताया. तुलसी जी ने कोढ़ी रुप में राम कथा सुनने आये बंजरंग बली को पहचान कर उनको दर्शन देने की प्रार्थना की. हनुमान जी के दर्शन कर धन्य हुए राम भक्त तुलसीदास. अब अनुरोध किया प्रभु रघुनंदन से मिला दो. हनुमान जी बोले जाओ चित्रकूट वही मिलेंगे राम. तुलसी पहुंचे रामघाट और आसन लगा कर राम नाम गाने लगे. दूसरे दिन उन्हें दो सुंदर रुप वाले बालक तीर धनुष लिए दिखे. तुलसी प्रभावित हुए पर पहचान ना पाये रघुनंदन को. बहुत पश्ताये तब हनुमान जी बोले कल फिर होंगे दर्शन अब नहीं चुकना. तुलसी व्यग्र हो करते हैं राम प्रतिक्षा. सुबह राम धुनी गाते पीस रहे चंदन एक सुंदर बालक आया उनके पास बोला स्वामी चंदन मिलेगा क्या. अब भी भक्त प्रभु से अनभिज्ञ. तब तोता बन हनुमान जी बोले चित्रकूट के घाट पर भयी संतों की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर..... बोलो... राम राम फिर क्या तुलसी दास अब भावविभोर होकर रोने लगे. सब भूल गये. श्री राम ने बालक रुप में तुलसी को तिलक लगाया और अंतर ध्यान हो गये. यही पर लिखा गोस्वामी ने रामचरितमानस. आगे क्या हुआ. सुनने के लिए पॉडकास्ट सुने. बनारसी सिंह द्वारा प्रस्तुत सनातन शहर काशी के बनारस बनने की हजार कहानी की यात्रा. कैसे काशी में मिले राम और कैसे रामचरितमानस पहुंची काशी. कैसे बाबा ने रामचरितमानस को कलियुग की श्रेष्ठ महाकाव्य बताया. संकट मोचन हनुमान के लिए हनुमान चालीसा क्यों रचा. सब कुछ सुनने को रहिये तैयार. आईये मेरे साथ काशी की विस्मरणीय यात्रा पर. हर एक पहलू से होगी मुलाकात. क्योंकि कहानी तो अभी शुरू हुई है. अपने कानो को रखिये खोल कर... हर रहस्य से परदा उठेगा हर कंकड़ बोलेगा. इतिहास से भी जो है पुराना जिसको किसी ने नहीं माना, वो कहानी लेकर आउंगी आपकी वाचक. बनारसी सिंह हर हर गंगे.
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh