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क्या आपने कभी सोचा है कि एक इमारत कैसे किसी शहर की सांस्कृतिक आत्मा बन जाती है? चलिए रवींद्र मंच की कहानी सुनाता हूँ – वो मंच, जो कभी जयपुर के कलाकारों और संस्कृति प्रेमियों का दिल था। 1961 में बनकर तैयार हुए इस स्थल ने दशकों तक नाटक, संगीत, कविता और नृत्य की अनगिनत प्रस्तुतियों को जीते-जीते देखा है। मंच शब्द अपने आप में gathering space को दर्शाता है – एक ऐसा स्थान, जहाँ creative energy का आदान-प्रदान होता है। और 'सांस्कृतिक पहचान', यानि एक शहर की असली छवि, हमेशा उसके ऐसे स्थलों से जुड़ी होती है। आप सोच रहे होंगे, 'इतिहास तो सबके पास है, फिर आज चर्चा क्यों?' क्योंकि, दोस्तों, इसी मंच की हालत अब हमारी उदासीनता की वजह से दयनीय हो गई है। क्या सच में हम अपनी विरासत को यूँ ही गुम होने देंगे?
By sanganer kesariक्या आपने कभी सोचा है कि एक इमारत कैसे किसी शहर की सांस्कृतिक आत्मा बन जाती है? चलिए रवींद्र मंच की कहानी सुनाता हूँ – वो मंच, जो कभी जयपुर के कलाकारों और संस्कृति प्रेमियों का दिल था। 1961 में बनकर तैयार हुए इस स्थल ने दशकों तक नाटक, संगीत, कविता और नृत्य की अनगिनत प्रस्तुतियों को जीते-जीते देखा है। मंच शब्द अपने आप में gathering space को दर्शाता है – एक ऐसा स्थान, जहाँ creative energy का आदान-प्रदान होता है। और 'सांस्कृतिक पहचान', यानि एक शहर की असली छवि, हमेशा उसके ऐसे स्थलों से जुड़ी होती है। आप सोच रहे होंगे, 'इतिहास तो सबके पास है, फिर आज चर्चा क्यों?' क्योंकि, दोस्तों, इसी मंच की हालत अब हमारी उदासीनता की वजह से दयनीय हो गई है। क्या सच में हम अपनी विरासत को यूँ ही गुम होने देंगे?