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जैसे मैं बाहर सूर्य से उपकार ग्रहण करता हूँ ठीक वैसे ही मुझे भीतर वायु की प्राण विद्या को जानकर अपनी उन्नति करनी चाहिए|
जैसे मैं बाहर सूर्य से उपकार ग्रहण करता हूँ ठीक वैसे ही मुझे भीतर वायु की प्राण विद्या को जानकर अपनी उन्नति करनी चाहिए|