Vedic Broadcast

ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 10. मंत्र 5 - शुद्ध चित्त वाला व्यक्ति ईश्वर से यह उपहार प्राप्त करता है


Listen Later

उ॒क्थमिन्द्रा॑य॒ शंस्यं॒ वर्ध॑नं पुरुनि॒ष्षिधे॑। श॒क्रो यथा॑ सु॒तेषु॑ णो रा॒रण॑त्स॒ख्येषु॑ च॥ - ऋग्वेद (1.10.5)


पदार्थ -


(यथा) जैसे कोई मनुष्य अपने (सुतेषु) सन्तानों और (सख्येषु) मित्रों के उपकार करने को प्रवृत्त होके सुखी होता है, वैसे ही (शक्रः) सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर (पुरुनिष्षिधे) पुष्कल शास्त्रों को पढ़ने-पढ़ाने और धर्मयुक्त कामों में विचरनेवाले (इन्द्राय) सब के मित्र और ऐश्वर्य की इच्छा करनेवाले धार्मिक जीव के लिये (वर्धनम्) विद्या आदि गुणों के बढ़ानेवाले (शंस्यम्) प्रशंसा (च) और (उक्थम्) उपदेश करने योग्य वेदोक्त स्तोत्रों के अर्थों का (रारणत्) अच्छी प्रकार उपदेश करता है॥


------------------------------------------------------------

(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

--------------------------------------------------------------

हमारे पॉडकास्ट का अनुसरण करें:

Spotify - https://spoti.fi/3sCWtJw

Google podcast - https://bit.ly/3dU7jXO

Apple podcast - https://apple.co/3dStOfy

Whatsapp पर प्रतिदिन पॉडकास्ट के एपिसोड प्राप्त करें: https://chat.whatsapp.com/CYWFBJR4ZId7tLCE1AKxwc

Telegram पर प्रतिदिन पॉडकास्ट के एपिसोड प्राप्त करें: https://t.me/+yqO2v2CET0o1OGRl

-------------------------------------------

हमसे संपर्क करें: [email protected]

--------------------------------------------

...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

Vedic BroadcastBy This podcast is brought to you by Gaurashtra.com