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ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 11. मंत्र 5


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त्वं व॒लस्य॒ गोम॒तोऽपा॑वरद्रिवो॒ बिल॑म्। त्वां दे॒वा अबि॑भ्युषस्तु॒ज्यमा॑नास आविषुः॥ - ऋग्वेद (1.11.5)


पदार्थ -


(अद्रिवः) जिसमें मेघ विद्यमान है, ऐसा जो सूर्य्यलोक है, वह (गोमतः) जिसमें अपने किरण विद्यमान हैं उस (अबिभ्युषः) भयरहित (बलस्य) मेघ के (बिलम्) जलसमूह को (अपावः) अलग-अलग कर देता है, (त्वाम्) इस सूर्य्य को (तुज्यमानासः) अपनी-अपनी कक्षाओं में भ्रमण करते हुए (देवाः) पृथिवी आदिलोक (आविषुः) विशेष करके प्राप्त होते हैं॥


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(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

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