रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥by:-Rahil. अपने मन का दुःख हमें स्वयं तक ही रखना चाहिए। लोग ख़ुशी तो बाँट लेते हैं। परन्तु जब बात दुःख की आती है, तो वे आपका दुःख सुन तो अवश्य लेते हैं, लेकिन उसे बाँटते नहीं है। ना ही उसे कम करने का प्रयास करते हैं। बल्कि आपकी पीठ पीछे वे आपके दुःख का मज़ाक बनाकर हंसी उड़ाते हैं। इसीलिए हमें अपना दुःख कभी किसी को नहीं बताना चाहिए।