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आज का अध्याय इसलिए महत्वपुर है कि न केवल महाभारत एक खोज को, वरण महाग्रन्थ महाभारत में भी इसी अध्याय का इंतजार था अपने महानायक के दर्शन के लिए। हाँ द्रौपदी स्वयंवर के अवसर पर ही श्री कृष्ण का महाभारत की माहगाथा में प्रवेश होता है। स्वयंवर में वो मूक दर्शक थे। और आज के ही अध्याय में उन दो कृष्ण का मिलन होता है जिनका नाम सदा सदा के लिए एक दूसरे से जुड़ जाने वाला है --- कृष्ण सखा, पार्थ सारथी।
और साथ ही हम जानेगे पांडवों के जन्म का रहस्य। जहाँ पांडवों और पांचाली का मिलन महादेव का द्रौपदी को दिया हुआ वरदान था, वहीं कोई अपना शाप भी भोग रहा था और कोई शिव की इक्षा पूर्ण करने को अवतरित भी हो रहा था।
By Vivek Dutta Mishraआज का अध्याय इसलिए महत्वपुर है कि न केवल महाभारत एक खोज को, वरण महाग्रन्थ महाभारत में भी इसी अध्याय का इंतजार था अपने महानायक के दर्शन के लिए। हाँ द्रौपदी स्वयंवर के अवसर पर ही श्री कृष्ण का महाभारत की माहगाथा में प्रवेश होता है। स्वयंवर में वो मूक दर्शक थे। और आज के ही अध्याय में उन दो कृष्ण का मिलन होता है जिनका नाम सदा सदा के लिए एक दूसरे से जुड़ जाने वाला है --- कृष्ण सखा, पार्थ सारथी।
और साथ ही हम जानेगे पांडवों के जन्म का रहस्य। जहाँ पांडवों और पांचाली का मिलन महादेव का द्रौपदी को दिया हुआ वरदान था, वहीं कोई अपना शाप भी भोग रहा था और कोई शिव की इक्षा पूर्ण करने को अवतरित भी हो रहा था।