कल थी काशी, आज है बनारस

Sant कबीर की कहानी और काशी से उनका judaav..


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हमारे बचपन में हिंदी साहित्य में और नीति की क्लास में एक कवि बहुत विख्यात थे. जो पढ़ने और समझने में अति सरल थे. चंद शब्दों में गहरी बात कहना उनकी कला थी. जी हाँ आज की कहानी के मुख्य पात्र वही कवि वर हैं जो संत हैं. अगर आप ललित कला में पारंगत हैं तो आप समय के साथ बहते रहते हैं प्रेरणा स्रोत बन कर लोगों में. जन कवि कबीर दास. जो जन्म से ही विपत्ति के शिकार थे पर उन्होंने विपत्तियों का हरा कर ईश्वर को पाया. गुरु को पाया. गुरु ने उनको ईश्वर तक पहुंचाया. ईश्वर से मिलकर वो संत बन गये. संत जो समाज, पंथ और अनीति से परे एक ऐसा उदाहरण जो पारस बन गया जिसे छुकर आप सोना बन जाना चाहते हो. हां एक मौलीक गुरु. जो अपने वचन से आपको ऐसे मार्ग दिखाते हैं जो है पर दिखता नहीं. जीवन को जीने योग्य बनाते हैं. वही हैं कबीर संत. मित्रों मैं कबीर दास की बात कर रही कबीर सिंह की नहीं. प्रार्थना है गुरु सोच समझ कर चुनें. खैर यह एक मजाक था.. जीवन आपका है चुनाव भी आपका ही होगा. बस परिणाम वही होंगे जैसा मार्ग आप चुनते हो. तो सतमार्ग पर चले, थोड़ा टेड़ा है पर आनंद वही है. नदी सा निरंतर बहते रहिये. मन और आत्मा शुद्ध रहेगी. जो कार्य कर के मन खिल उठे वही करीये सहज भाव से. गलत का विरोध करीऐ. मौन को धारण कर ज्ञान की गंगा में डुबो जाइए फिर देखीऐ सब कुछ सहज और सरल है. हर एक व्यक्ति का जीवन प्रेरणा स्रोत है. बस उसको जानने और समझने की जरूरत है. ध्यान देने की जरूरत है. ध्यान आएगा योग से. योग से ही सब कुछ संभव है. यह योग जीवन शैली है जैसे भोजन करना, सांस लेना, आदि. बस इसे अपनाना है और जुड़ जाना है एक असीम कृपा से. वही ईश्वर है. वही गुरु हैं. वही ज्ञान का आधार है. हर हर महादेव.
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh