किताबें पढ़ने का लाभ तभी है, जब उनका सार समझा जाए
एक अनंत जल स्रोत की कल्पना करिए। उसमें हर जगह पानी है। इस पानी में पानी में भरा हुआ एक बर्तन रख दें। अब बर्तन के अंदर पानी है और बाहर भी पानी है। बर्तन की वजह से लगता है पानी दो भागों में बंट गया है। इंसान बर्तन की महान संत व विचारक वजह से एक अंदर और बाहर का अनुभव करने लगते हैं। इंसान के अंदर जब तक 'मैं का भाव रहेगा, ऐसा ही अनुभव होता रहेगा, जब 'मैं गायब हो जाता है तो पानी एक महसूस होने लगता है। ये बर्तन ही में या अहम
रामकृष्ण परमहंस
किताबें या ग्रंथ पढ़ना कई बार लाभ से ज्यादा नुकसान करते हैं। जरूरी बात है उनके सार को जानना, समझना। उसके बाद फिर किताबों की जरूरत नहीं रह जाती है। ये जरूरी है कि ग्रंथों का सार समझकर में
या अहम मिट जाए। उन्हें सिर्फ दिखाने के लिए यांचना हितकर नहीं होता। उनके गर्म को समझना बेहद जरूरी है।
जब तक मधुमक्खी फूल की पंड़ियों से बाहर है और उसने पराग के मोठेपन को नहीं चखा है, वो फूल के चारों ओर करती हुई मंडराती रहती। के अंदर आ जाती है, तो शांत बैठकर पराम पीने का आनंद लेती है। इसी प्रकार जब तक इंसान मत और सिद्धांतों को लेकर बहस और झगड़ा करता रहता है, उसने सच्चे विश्वास के अमृत को नहीं चखा है। जब उसे ईश्वरीय आनंद अमृत का स्वाद मिल जाता है, वो चुप और शांति से भरपूर हो जाता है।
कम्पस की चुंबकीय सुई हमेशा उत्तर दिशा की ओर इशारा करती है और इसकी वजह से, पानी का जहाज आगे बढ़ते हुए अपनी दिशा से नहीं भटकता। इसी प्रकार जब तक व्यक्ति का हृदय ईश्वर में लगा रहता है, जो सामारिक माया के समुद्र में भटकने से बच