सावन का महिना, पवन करे... शोर... जियरा रे ऐसे झूमे, जैसे मनवा नाचे मोर, यह गीता सबने सुना है और सुनते भी हैं. जब भी बारिश होती है. बादल से जल का बरसना मोर, धरती, किसान, प्यासे व्यक्ति के मन में, प्रकृति के आगन में शीतला भर देता है. है ना. मानव शरीर जो अंदर से रासायनिक ऊर्जा का केंद्र है, वह भी बारिश से आनंद और शीतलता पाता है. सावन में हवा ठंडी हो जाती है. शरीर का तापमान सामान्य होने लगता है. वरना जयेष्ठा माह में तो सूर्य देव की अति विकिरण ऊर्जा से पूरी धरती तप रही होती है. तब सागर का खारा जल बादल में भरा जा रहा होता है. दो महिने की अति गर्मी के बाद सावन में यह मेघ ना केवल धरती को जल से शीतल करते हैं बल्कि पूरी प्रकृति शीतल और मनोरम हो जाती है. सब कुछ धुला और साफ. यह मौसम जो परिवर्तन काल का प्रतीक है जो शीत को आने का मार्ग भी देता है. ऐसे मौसम में विषाणु, जीवाणु भी अति तीव्र गति से विकसित होते हैं. बीमारी का मौसम नहीं है पर अगर हम साफ सफाई का ध्यान नही देंगे. तो यही सावन रोगी माह भी बनता है. सनातन धर्म में हर नियम जो जीवन शैली का हिस्सा है सब वैज्ञानिक आधार पर बनाये गये हैं. हमारे देवी और देव सब जीवन और मरण के शक्ति को धारण करते हैं. शिव जो हर परमाणु में है. शक्ति उसी परमाणु का ऊर्जा रूप है. शिव और शक्ति एक है. शिव के बिना शक्ति और शक्ति बिना शिव अधूरे हैं. यह भी सब जानते हैं. पर मानते नहीं. तो मानो. शीतला देवी पर बनी फिल्म हम सब ने देखी है. है ना. पर बाजार और विज्ञान के अज्ञान ने हमारे मन और मष्तिष्क से यह सब मीटा दिया. पर यह यही है. हमारे जगने और नियम पर चलने का इंतजार कर रहा. आज कोरोना काल में सबने खुब हाथ धोया, खुब नहाये, खुब सफाई की, खुब प्रोटीन और काढ़ा पिया. क्या है यह सब वही जो सनातन धर्म और आयुर्वेद कहता है. जीवन शैली. मानव का शरीर भी विषाणु और जीवाणु से भरा पड़ा है पर वह हमें नुकसान नहीं पहुचाते. हम उनका घर है. पर कोई दुसरे देश का विषाणु जो अति चालु है दैत्य है. असुर है. वो आपके शरीर में आयेगा तो युद्ध होगा अंदर. शरीर का ताप बढेगा. जहाँ भी यह जगह पायेगा कमजोर वहाँ हमला करेगा. छुपेगा. संख्या बढायेगा फिर हमला करेगा. अगर हम जीवन शैली में नियम और अनुशासन का पालन करते हैं तो स्थिति पर पहले ही काबू पा लेते. पर नहीं, आंख, नाक, कान, बंद कर जी रहे हम. वास्तविक में मृत्यु का इंतजार कर रहे. शिव के हर होकर भी समझे नहीं. योगी यानि योग से जो सब साध ले. साधने के लिए नियमित आदत से इस साफ, सफाई, स्वच्छता को पालन करो. देखो को जीवाणु वायरस आपका बाल भी बाका नहीं कर पायेगा. इसके लिए अगर मानसिक बल आपको अपने देवी देवता को चरण वंदन से मिलता है तो हम सनातनी लोग अज्ञानी कैसे. खैर दशाश्वमेध घाट के पास है शीतला घाट. वहाँ है शक्ति के शीतला रुपी देवी का मंदिर. जो निरोगी काया की देवी हैं. सभी वायरस जनित, जीवाणु, जनित रोग, ज्वर, रक्त विकार, और त्वचा विकार को हरती हैं. नीम, हल्दी, बसोड़ा. यानि बासी भोजन एक दिन पुराना ही उनका प्रसाद है. यही है ब्रह्म जी द्वारा स्थापित शिव विग्रह, और पाकिस्तानी महादेव का मंदिर भी. यह महादेव पड़ोस से आए हैं. दो व्यापारी लाऐ इन्हें. हर शिवालय सा यहाँ भी बहुत श्रद्धा है भक्तों की. विश्वास और प्रेम सीमा में नहीं बंधता. आस्था एक भाव है. जो बहती नदी सा है अपने आराध्य से जा मिलता है किसी सागर सा. अब राम जी ने लंका में जाने से पूर्व शिव उपासना किया. तो शिव लिंग बनाया समुद्र किनारे. रामेश्वरम वही है. शिव और उनके भक्त पूरी दुनिया में हैं. काशी पर एक ही है. जो छोटा भारत है. छोटे भारत में अपने सहोदर भाई पाकिस्तान के लिए हमेशा स्नेह रहा है. स्नेह राज्य की सीमा से बंधा नहीं होता. बस होता है. आकाश सा. समान भाव सा. आगे और काशी में क्या क्या है जानने के लिए सुनिये, बनारसी सिंह को. सुनने के लिए एंकर, गूगल, आदि पर जाए और लिंक शेयर करें. जब आप सकारात्मक ऊर्जा को ज्ञान रुप में साझा करते हो तो क्या होता है... वो लौट कर आपके पास आता है और सब मै ही बताऊँ और कहानी चलती जाती है कल्याण की. सुनो, सुनाओ, शिव के गुण गाओं. बम भोले..