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इस अध्याय में ब्रह्माजी नारद को बताते हैं कि देवी का वरदान प्राप्त कर प्रजापति दक्ष अपने आश्रम लौटे और मानसिक सृष्टि करने लगे। लेकिन उसमें वृद्धि न होते देख वे चिंतित हो उठे और ब्रह्माजी से उपाय पूछते हैं। ब्रह्माजी उन्हें शिव भक्ति करने और वीरण की पुत्री असिक्नी से विवाह कर मैथुनी सृष्टि का आरंभ करने की सलाह देते हैं।
दक्ष असिक्नी से विवाह करते हैं और उनके दस हज़ार पुत्र हर्यश्व जन्म लेते हैं। वे सभी सृष्टि कार्य हेतु तप करने निकलते हैं लेकिन नारद मुनि उन्हें वैराग्य का मार्ग दिखा देते हैं, जिससे वे वापस नहीं लौटते। इससे दक्ष अत्यंत दुखी होते हैं।
बाद में उनके एक हज़ार अन्य पुत्र शबलाश्व भी उसी मार्ग पर चलते हैं और वे भी वैराग्य धारण कर लेते हैं। नारद मुनि द्वारा बार-बार ऐसा किए जाने पर क्रोधित होकर दक्ष उन्हें शाप देते हैं कि वे तीनों लोकों में कहीं स्थिर नहीं रह सकेंगे।
नारद मुनि यह शाप शांत मन से स्वीकार कर लेते हैं और उनके मन में कोई विकार नहीं आता।
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इस अध्याय में ब्रह्माजी नारद को बताते हैं कि देवी का वरदान प्राप्त कर प्रजापति दक्ष अपने आश्रम लौटे और मानसिक सृष्टि करने लगे। लेकिन उसमें वृद्धि न होते देख वे चिंतित हो उठे और ब्रह्माजी से उपाय पूछते हैं। ब्रह्माजी उन्हें शिव भक्ति करने और वीरण की पुत्री असिक्नी से विवाह कर मैथुनी सृष्टि का आरंभ करने की सलाह देते हैं।
दक्ष असिक्नी से विवाह करते हैं और उनके दस हज़ार पुत्र हर्यश्व जन्म लेते हैं। वे सभी सृष्टि कार्य हेतु तप करने निकलते हैं लेकिन नारद मुनि उन्हें वैराग्य का मार्ग दिखा देते हैं, जिससे वे वापस नहीं लौटते। इससे दक्ष अत्यंत दुखी होते हैं।
बाद में उनके एक हज़ार अन्य पुत्र शबलाश्व भी उसी मार्ग पर चलते हैं और वे भी वैराग्य धारण कर लेते हैं। नारद मुनि द्वारा बार-बार ऐसा किए जाने पर क्रोधित होकर दक्ष उन्हें शाप देते हैं कि वे तीनों लोकों में कहीं स्थिर नहीं रह सकेंगे।
नारद मुनि यह शाप शांत मन से स्वीकार कर लेते हैं और उनके मन में कोई विकार नहीं आता।
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