आठवाँ अध्याय – काम की हारइस अध्याय में ब्रह्माजी और नारद जी के संवाद द्वारा बताया गया है कि कैसे कामदेव ने भगवान शिव को मोहित करने का प्रयास किया और असफल रहा।नारद जी ने ब्रह्माजी से संध्या के विवाह के बाद की घटनाओं के बारे में पूछा। ब्रह्माजी ने बताया कि जब वे मोह में पड़ गए थे, तब भगवान शिव ने उनका उपहास किया। इस अपमान से क्रोधित होकर ब्रह्माजी ने शिवजी को मोहित करने के लिए कामदेव और उनकी पत्नी रति को योजना बनाने का निर्देश दिया।कामदेव ने ब्रह्माजी की आज्ञा मान ली और कहा कि उनका अस्त्र सुंदर स्त्री है, अतः भगवान शिव को आकर्षित करने के लिए किसी अद्वितीय सुंदर स्त्री की सृष्टि की जाए। ब्रह्माजी चिंता में पड़ गए और उनकी सांसों से पुष्पों से सजे वसंत का प्रकट होना हुआ।इसके बाद, कामदेव, वसंत, और अन्य सहायकों ने भगवान शिव को मोहित करने की योजना बनाई। उन्होंने शिवजी के पास जाकर उन्हें मोहित करने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। मरतगणों को भी भेजा गया, लेकिन वे भी असफल रहे।अंत में, वसंत और अन्य सहायकों के साथ कामदेव ने एक और प्रयास करने का निर्णय लिया और रति सहित शिवजी के स्थान की ओर बढ़ गए।अध्याय का महत्व:इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि भगवान शिव योग और तपस्या में स्थित रहते हैं, इसलिए उन्हें किसी भी सांसारिक आकर्षण से विचलित नहीं किया जा सकता। यह अध्याय काम (इच्छाओं) पर आत्मसंयम की विजय को दर्शाता है।