भगवान की वाणी के दिव्य वचन- "मनुष्य अपने जीवन के वे क्षण, जिनमें उसे अपने शरीर की सेवा नहीं करनी होती, मुझे इस रूप में अर्पित करने का प्रयास करे, कि मन उसी में समा कर एकरूप हो जाये। वाणी का हर अक्षर, जितना ही अधिक मन में समाने का प्रयास करोगे, जीवन में जितना ही उतारने का प्रयास करोगे, स्वयं ही उसकी शक्ति प्राप्त करते जाओगे। वाणी के एक-एक अक्षर में शक्ति को भण्डार है। स्वयं शक्ति का स्रोत ही है, यह वाणी। बिना पढ़े, बिना मनन किये, क्या पा सकोगे उस शक्ति को?"