जीवन में बहुत बार परिस्थियाँ कुछ ऐसी निर्मित हो जाती हैं कि सच्चाई की परतें दब जाती हैं और अपनी बेबस इंसान अपनी बेगुनाही का सबूत देने में समर्थ नहीं हो पाता है ऐसा ही कुछ घटित हुआ है इस प्रस्तुत कहानी में और अंत में जब कहानी का पात्र अपने को बेगुनाह साबित केआर पाता है तो उसको क्या कीमत चुकानी पड़ती है। सुनिए कहानी बेगुनाह.