अविनाश ने ज्योति को चाहा, शादी के बाद बिना चेहरा देखे ही बोल दिया कि मेरे मन मंदिर में कोई और है। ज्योति समझ ही न पायी कि गलती या गलतफहमी कहाँ है। पिताजी के पास वापिस आकर कैसे किया उसने सब कुछ ठीक....सुनिए शकुंतला ब्रजमोहन के कहानी संग्रह चक्रव्यूह की पाँचवी कहानी......