श्री कनकधारा स्तोत्र के रचनाकार आदि शंकराचार्य हैं। एक बार शंकराचार्य किसी ब्राह्मणी के घर भिक्षाटन के लिए गए। उस समय उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा देने के लिए कुछ भी नहीं था। ऐसा जानकर शंकराचार्य ने इस स्तोत्र का पाठ किया। पाठ करते ही स्वर्ण मुद्रा की वर्षा होने लगी। उसी समय से यह स्तोत्र कनकधारा स्तोत्र के नाम से जाना जाने लगा।