1.उत्पत्तिस्थान पर वस्तु की प्रतिष्ठा नहीं होती, अन्यत्र ही होती है। रामकथा के तीन प्रमुख प्रवचन - शंकरजी द्वारा, काकभुसुण्डि द्वारा और याज्ञवल्क्यजी द्वारा। शंकरजी ने कैलास पर पार्वती को सुनाया कोई सभा आयोजित नहीं किया, प्रचारित प्रसारित नहीं किया। याज्ञवल्क्यजी ने प्रयागमें केवल भारद्वाज को उस समय सुनाया वह जब माघस्नान के उपरान्त अन्य सब सन्त के चले गये थे। यह दोनों प्रवचन देववाणीमें हुये। काकभुसुण्डिजी ने गरुणजीको समाज में सुनाया । वह समाज पक्षियों का था। पक्षियों की बोली में सुनाया। 2. वाणी(सरस्वती) की यात्राके पडा़व - मूलाधार उद्गमस्थल(परा) - स्वाधिष्ठान/ब्रह्मलोक (पश्यन्ती) -हृदय(मध्यमा) - कण्ठ तालु इत्यादि(वैखरी)। उसके यात्राकी सार्थकता भगवत् चर्चा और शास्त्रचर्चा में है। लोकचर्चा और संसारी व्यक्तियों की चर्चा करने से सरस्वतीका श्रम व्यर्थ जाता है।