तुलसीदासजी कहते हैं मेरी रचना तो गंवारू भाषामें है। रस छन्द अलंकार इत्यादि कविता के गुणोंसे रहित है। इसमें विद्वत्ता भी नहीं है। यह सभी गुणोंसे रहित है किन्तु इसमें एक गुण है जो विश्वप्रसिद्ध है। वह यह हैकि इसमें श्रीरामका पवित्र नाम है - वह नाम जो वेदों-पुराणोंका सारतत्व है, वह नाम जिसका उमासहित शंकरजी जप करते हैं , वह नाम जो मङ्गलका घर है और अमङ्गल का हरण करने वाला है। हरिहर पदरति मति न कुतरकी। तिन्ह कहुँ मधुर कथा रघुबर की।। एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा।। मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।