जय सीया राम, मित्रों आज की कथा साकेत नगर में स्थित संकट मोचन हनुमान की. पहले यह क्षेत्र आनन्द कानन वन था. जहाँ पर हनुमान जी ने संत तुलसी दास को दर्शन दिये. तुलसी दास के प्रार्थना पर इसी वन में प्रभु महावीर ने मिट्टी की मूर्ति में प्रवेश किया. ताकि श्री राम द्वारा दिए गये संकट मोचन नाम और रुप को स्थापित किया जा सके. श्री राम के जीवन में वनवास के अंत से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक श्री राम की सेवा करने वाले हनुमान जी को राम जी ने धरती पर ही रह कर धरती के अंत तक सभी भक्तों के संकट हरने का आशीर्वाद दिया. इसलिए संकट मोचन में विश्व भर से भक्त आते हैं और अपनी झोली भर जाने पर महावीर को धन्यवाद करते हैं. साल में हर मंगल और शनिवार को जरूर संकट मोचन मंदिर सजता है किसी भक्त की इच्छा पूरण हुई होती है वो अपनी श्रद्धा को दर्शाने के लिए विभिन्न आयोजन करते हैं. तुलसी दास जी ने ही हनुमान जी के पूजन के लिए हनुमान चालीसा और हनुमान बाहुक लिखा. हनुमान बाहुक कि एक लोक कथा है. कहते हैं एक बार तुलसी दास को बाह में अति पीड़ा हो रही थी तब उनको हनुमान जी याद आये. उन्होंने प्रार्थना की पर दर्द बंद नहीं हुआ. फिर पीड़ा से क्रोधित होकर हनुमान बाहुक ग्रंथ लिखा. जब गग्रन्थ समाप्त हुआ तब पीड़ा भी समाप्त हो गयी. ऐसी और भी कहानियां हैं. जंहा ईश्वर और भक्ति के मेल से कुछ सुंदर रचा गया. देखिए पीड़ा सहन कर ही संसार जीवन और मनुष्य निखरता है. रावण ने पीड़ा में शिव तांडव स्त्रोतम् रचा. श्रृष्टि मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय मंत्र लिखा. बहुत से ऐसे प्रमाण हैं आप भी जानते हो. तो कभी पीड़ा हो अति असहनीय तो समझो ईश्वर कुछ बड़ा और बृहद रच रहा. सकारात्मक रहीए. राम का नाम लिजीए. ईश्वर को मन में रखकर कार्य करिये. सब सुंदर और अच्छा होगा. जय श्री राम.