सनातन धर्म का जन्म पता है आपको. नहीं. मुझे भी नहीं पता. मृत्यु का पता है. मुझे नहीं पता. क्या हम अपने जन्म और मृत्यु से परिचित हैं. नहीं. किसी ने या माता पिता ने हमें बताया कि हम उनके कुल में जन्में. वो किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय के हो सकते हैं. हैं ना. पर एक जीव का पुनर्जन्म तब होता है जब वो गुरु से मिलता है. उसे ज्ञान होता है अपने अस्तित्व का. तब उसमें ईश्वर को जानने की इच्छा का जन्म होता है. जिज्ञासा तो गुरु ही देता है. वह गुरु आपको सत्य असत्य दोनों बताता है आप पर छोड़ देता है कि अब राह तुम्हारी है चलो और वो पा लो जिसकी तुम्हे अभिलाषा है. इसलिए कबीर गुरु को गोविन्द से बड़ा बताते हैं. इसलिए रविदास गुरु के ज्ञान से स्वयं को पानी और ईश्वर को चंद बताते हैं. ईश्वर तो एक ही है बस उसके अनेक नाम और रुप भी भिन्न-2 है. इसी तरह मनुष्य का भी अलग अलग वर्ग और जाति में जन्म होता है पर उसकी असली पहचान उसके मानवीय गुण है. जैसे धैर्य, सहनशीलता है, विनम्रता है. सहयोग, सदाचार है. इन्ही गुणों को अपने अंदर सजोने के लिए मनुष्य किसी भी कुल में जन्म लेकर जीवन यात्रा में वहाँ पहुचने का प्रयत्न करता है जो उसकी पहचान है. सनातन धर्म यही तो सिखाता है. सहनशीलता, सदाचार, धैर्य, ज्ञान, सहयोग, प्रेम, सह अस्तित्व, उपकार. यह सब धारण कर आज भी कोई मनुष्य ईश्वर तुल्य हो सकता है. है ना. यही ज्ञान और उपहार है संत रविदास का मानव समाज को और उनकी प्रिय नगरी काशी को. उन्होंने ईश्वर के निराकार रुप की उपासना की. शरीर से वह कर्म किया जिसमें जन्मे पर मन और आत्मा के स्तर पर वो संत बन गये. सरल, सहज, सत्य के समान. आज की कहानी यही तक. अगली कहानी किसी और व्यक्ति, स्थान, और घटना पर. जिसकी आज भी महत्व हो. हर हर महादेव.