MicInkMusafir (Amitbhanu): Voices, Verses, & Voyages

Sooni Aankhen Sookhe Sapne(Hindi Poem)


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सूनी आँखें सूखे सपने 

कौन बिगाड़े खेल ये अपने

फूँक-फूँक के पैर रखे

काँटों पे छाले क्यों बनते!

मन कपास के श्वेत धागे

रंग-बिरंगे रिश्ते बँधते

मोड़ मिलें तो छूटे हाथ

चार कदम भी साथ न चलते!

अदृश्य दीवारें सँकरे कोने

हाथों से सौभाग्य फिसलते

बिन पत्तों के पेड़ों से

उम्मीदों के घड़े लटकते!

थका हुआ सा दिन कैसे

देखे थके सूरज को ढलते

शाम बिना ही रात आ जाती

बिना सुबह के ही दिन चढ़ते!

ऐसी होनी ही जीवन है

देर तो हो दिन नहीं बदलते

ये कैसी अनहोनी है कि

काग़ज़ के भी फूल महकते!

किसने किसको कब बोला था

बोला था तो क्यूँ बोला था

क्या ये सच है सुना हुआ कि

सबके एक दिन भाग्य पलटते!

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MicInkMusafir (Amitbhanu): Voices, Verses, & VoyagesBy MicInkMusafir (Amitbhanu)