Never Born, Never Died - हिन्दी

स्वातंत्र्यात् परमं पदम् (अष्‍टावक्र : महागीता - 69)


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विषयद्वीपिनो वीक्ष्य चकिताः शरणार्थिनः।

विशंति झटिति क्रोडं निरोधैकाग्र्‍यसिद्धये।। 221।।
निर्वासनं हरिं दृष्ट्‌वा तूष्णीं विषयदंतिनः।
पलायंते न शक्तास्ते सेवंते कृतचाटवः।। 222।।
न मुक्तिकारिकां धत्ते निःशंको युक्तमानसः।
पश्यन्‌श्रृण्वन्‌स्पृशन्‌जिघ्रन्नश्नन्नास्ते यथासुखम्‌।। 223।।
वस्तुश्रवणमात्रेण शुद्धबुद्धिर्निराकुलः।
नैवाचारमनाचारमौदास्यं वा प्रपश्यति।। 224।।
यदा यत्कर्तुमायाति तदा तत्कुरुते ऋजुः।
शुभं वाप्यशुभं वापि तस्य चेष्टा हि बालवत्‌।। 225।।
स्वातंत्र्यात्‌ सुखमाप्नोति स्वातंत्र्याल्लभते परम्‌।
स्वातंत्र्यान्निर्वृतिं गच्छेत्‌ स्वातंत्र्यात्‌ परमं पदम्‌।। 226।।

विषयद्वीपिनो वीक्ष्य चकिताः शरणार्थिनः।

विशंति झटिति क्रोडं निरोधैकाग्र्‍यसिद्धये।।

‘विषयरूपी  बाघ को देखकर भयभीत हुआ मनुष्य शरण की खोज में शीघ्र ही चित्त-निरोध और  एकाग्रता की सिद्धि के लिए पहाड़ की गुफा में प्रवेश करता है।’

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Never Born, Never Died - हिन्दीBy Oshō - ओशो