मन में दुख की स्क्रिप्ट न लिखें, अभिव्यक्त कर दें दें
जब भी कोई आपदा या विपत्ति आ पड़े या कुछ बहुत बुरा हो जाए, जैसे बीमारी, आदि तब आश्वस्त रहिए कि इसका दूसरा पहलू भी है, कि आप एक अविश्वसनीय एकहार्ट टॉल्ल चीज से बस विख्यात लेखक एक कदम दूर हैं। और वह है उस पीड़ा व दुख-तकलीफ रूपी घटिया धातु को सोने जैसी कीमती धातु में बदलने का समय और एक कदम को समर्पण कहते हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि आप ऐसी स्थिति में सुखी हो जाएंगे, खुश हो जाएंगे। लेकिन ऐसा अवश्य है कि आपका भय और दुख, शांति में, सुकून में बदल जाएगा। यह ईश्वरीय शांति है जो किसी भी बोध शक्ति से पार और परे है। उसकी तुलना में सुख तो एक बहुत ही उथली चीज है। जो कुछ बाहर है अगर उसे आप स्वीकार नहीं कर सकते हैं तो जो भीतर है उसे स्वीकार कीजिए।
इसका अर्थ है दुःख का प्रतिरोध न करें। उसे वहीं रहने दें। वह दुख जिस भी रूप में हो- शोक, विषाद, हताशा, निराशा, भय, चिंता, अकेलापन उसके प्रति समर्पण करें। मानसिक रूप से कोई ठप्पा लगाए बिना उसे साक्षी की तरह देखें। तब देखिए कि समर्पण का चमत्कार उस गहरे दुख को किस तरह एक गहरी शांति में बदल देता है। जब बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता है तो भी उससे पार पाने का कोई तो रास्ता होता ही है। इसलिए दुख-दर्द से बच कर मत भागिए। उसका सामना कीजिए। उसे महसूस कीजिए- पर उसके बारे में सोचिए मत। हो सके तो उसे अभिव्यक्त कीजिए, लेकिन उसके बारे में अपने मन में कोई स्क्रिप्ट न रचते रहिए। उस एहसास को पूरी तवज्जो दीजिए, न कि उस व्यक्ति, उस घटना या उस स्थिति को जो कि उस एहसास के पैदा होने का कारण लग रहा हो । मुश्किलों से अच्छी तरह लडने का यही तरीका है ।