Akhi Shayar

उसे मुझसे मोहब्बत नहीं है।


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अब वो छोड़कर जा चुकी हो,  

मुझे छोड़ो,  

वो जो मुझे अपना मानते हैं,  

उन्हें उदास कि हो।  


मेरी ज़िंदगी रुक सी गई है,  

जो भी है, जैसा है,  

सब अच्छा है,  

मुझे अब मेरा नहीं, अपनों की परवाह है।  


माँ मुझे देखती है,  

मेरे चेहरे पर मुस्कान,  

और उसके पीछे का दर्द समझती है।  

बहन परेशान है,  

वो जो चाहती थी,  

कि तुम दूर न जाओ।  


मेरे दोस्तों से कहती है,  

"इसे समझाओ,  

इसका वो बचपना वापस लाओ।"  

दोस्त भी अब कम बचे हैं,  

सब तो इसी जंजाल में फंसे हैं।  

कुछ को तो मैंने ही  

अपनी मोहब्बत में दूर किया है।  


माँ वो दिन याद दिलाती है,  

जब मैं हँसता था खुलकर,  

चलता था मचलकर।  

माँ को पता है ज़िंदगी चार दिन की है,  

उन्हें डर है,  

कि मुझे ऐसा न लगे मैंने ज़िंदगी जी ली है।  


उसके जाने के बाद  

मैंने अपना ये हाल किया है।  

माँ को कैसे बताऊँ,  

यकीन दिलाऊँ,  

कि सँभल जाऊँगा मैं।  


उससे ज़्यादा माँ से प्यार है।  

सब तो यूँ चलता रहेगा,  

वो तो सिर्फ दिल में बसी है,  

माँ जो मेरे दिल, जान,  

हर रूह में बसी है।  


अब दिन बीत रहे हैं,  

फिर भी वो याद आ रही है।  

शायद कुछ बचा है,  

या फिर ये मोहब्बत  

ऐसा ही होता है।  


मेरे साथ ये तो  

पहली और आखिरी दफ़ा है।  

अब मुझमें हिम्मत नहीं है,  

जब से कहा है उसने,  

"मुझसे मोहब्बत नहीं है।"  

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Akhi ShayarBy Akhi