वेदान्त, एपिसोड 545. अपरोक्षानुभूतिः , श्लोक 19 से 23.
आत्मा ज्ञानमयः पुण्यो देहो मांसमयोऽशुचिः।
तयोरैक्यं प्रपश्यन्ति किमज्ञानमतः परम्।।
(आत्मा ज्ञानस्वरूप और पवित्र है। देह मांसमय और अपवित्र है। इन दोनों की एकता देखने से बढ़ अज्ञान और क्या हो सकता है?)
आत्मा की परिभाषा क्या है? "स्थूलसूक्ष्मकारणशरीराद्व्यतिरिक्तो अवस्थात्रय साक्षी पञ्चकोशातीतः सन् सच्चिदानन्द स्वरूपो यस्तिष्ठति स आत्मा।"
पहले के एपिसोड्स में विवेचन चुके हैं कि आत्मा स्थूल सूक्ष्म और कारण तीनों शरीरों, पञ्चकोशों और जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति तीनों अवस्थाओं से परे है और इन सबका साक्षी तथा सत् चित् और आनन्द स्वरूप है।
आत्मा और शरीर को एक मान बैठे हैं, यही सबसे बडा़ भ्रम है। कैसे?
आत्मा के चार विशेषण हैं - सत् चित् आनन्द और अद्वैतपना ।
दूसरी ओर इससे विपरीत चार विशेषण अनात्मा के हैं - असत् जड़ दुःख और द्वैतपना।
अनात्मा के दुःख और द्वैतपना ने आत्मा के आनन्द और अद्वैतपने को ढंक रखा है।