दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

वेदान्त। एपिसोड 552, चतुःश्लोकी महाभारत सार,योगवासिष्ठ, उपशम-17,18,19


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वेदान्त। एपिसोड 552, चतुःश्लोकी महाभारत सार।योगवासिष्ठ, उपशम-17,18,19। इस एपिसोड में- *द्वैत और अद्वैत का व्यावहारिक समन्वय। *आत्मा बद्ध ही नहीं तो मोक्ष किसका? * यदि आपके पूर्वजन्म हुये थे और आगे भी जन्म होंगे, तो केवल इस जन्म के सगे सम्बन्धियों मित्रों शत्रुओं से राग - द्वेष क्यों? और *यदि पहले आप अन्य शरीर थे, इस समय अन्य शरीर हैं तथा आगे अन्य शरीर होंगे तो केवल वर्तमान क्षणिक शरीर के सम्बन्धियों के लिये शोक क्यों। *यह तो नदी के प्रवाह में बहते हुये तिनकों की भांति हैं जो संयोगवश क्षण भर के लिये मिलकर अलग हो जाते हैं। *समस्त प्राणी आपके बन्धु बान्धव हैं क्योंकि असंख्य जन्मों में सभी योनियों में आप जाने कितनी बार जन्म ले चुके हैं और बारी बारी से समस्त प्राणियों के साथ सम्बन्ध रहा है। *यदि अद्वैतदृष्टि है तो सभी प्राणियों से एकात्म सम्बन्ध है। तो किसी भी स्थिति में एक-दो सम्बन्धियों के लिये शोक क्यों? *यदि माता पिता संतान पत्नी इत्यादि स्नेहवश शोक के योग्य हैं तो बीते हुये हजारों माता पिता संतान पत्नी इत्यादि के लिये शोक क्यों नहीं करते?
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati