The Anokha show

वेतन, कानून और अधिकार भारत में महिलाओं से कितने दूर? Factorial Episode15


Listen Later

यूएन वीमेन (संयुक्त राष्ट्र का महिलाओं के लिए संगठन) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक बाक़ी दुनिया की तरह ही भारत भी साल 2030 तक लैंगिक बराबरी हासिल करने के रास्ते पर नहीं है.
रिपोर्ट के मुताबिक, यदि हालात मौजूदा गति से सुधरे, तो भेदभावपूर्ण क़ानूनों को हटाने और महिलाओं और लड़कियों को क़ानूनी बराबरी देने में मौजूदा फ़ासलों को कम करने में 268 साल और लग सकते हैं.
लैंगिक बराबरी संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में शामिल है. इसका मक़सद लिंग के आधार पर भेदभाव को ख़त्म करना और महिलाओं और लड़कियों को मिलने वाली क़ानूनी सुरक्षा में ख़ामियों को दूर करना है.
इसका मतलब है बराबर वेतन, कार्यस्थल पर मान्यता और कार्यस्थल के अंदर और बाहर क़ानूनी अधिकार.
विज्ञापन
वेतन गैरबराबरी
वेतन में ग़ैर बराबरी
भारत में ऐसा कोई प्रभावी क़ानून नहीं है जो कार्यस्थल पर बराबर कार्य के लिए बराबर वेतन का अधिकार देता हो.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की ताज़ा जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 में भारत 146 देशों में 135वें नंबर पर है.
भारत में ऐसे क़ानून और अधिनियम हैं जो महिलाओं को रात के समय पुरुषों की तरह काम करने से रोकते हैं.
उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र दुकानें और प्रतिष्ठान (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम 2017, धारा 13, खनन अधिनियम 1952, धारा 46 और कारखाना अधिनियम, धारा 27, 66 और 87 एक महिला की किसी कारखाने में पुरुषों की तरह काम करने की क्षमता को सीमित करते हैं.
इन सभी कारकों से वर्ल्ड बैंक के लैंगिक बराबरी सूचकांक में भारत का स्कोर सिर्फ़ 25 है, जबकि ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी जैसे विकसित देशों में बेहतर क़ानून हैं जो महिलाओं के वेतन को प्रभावित करते हैं.
ऊपर दिए गए संकेतकों में महिलाओं द्वारा परिवार के लोगों के लिए किया जाने वाला अवैतनिक घरेलू काम और सेवा शामिल नहीं है.
वर्ल्ड कप: क़तर में चल रही प्रतियोगिता में कौन आगे गया और किसका पत्ता हुआ साफ़
कार्यस्थल पर भारतीय माएं
बच्चा होने के बाद उसकी परवरिश और देखभाल एक और कारण है जो महिलाओं की काम करने की क्षमता को प्रभावित करता है.
जबकि, भारत में एक मज़बूत क़ानून है मातृत्व लाभ अधिनियम जो मां को 182 दिनों के सवेतन मातृत्व अवकाश का अधिकार देता है, पिता के लिए सवेतन छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है.
गर्भवती महिलाओं को नौकरी से हटाने से रोकने के लिए भी कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है.
इससे महिलाओं को नुक़सान होता है क्योंकि कार्यस्थल उन्हें नौकरी से ना निकालने के लिए क़ानूनी तौर पर बाध्य नहीं हैं.
जिन देशों का स्कोर अच्छा हैं वहां पितृत्व अवकाश या दोनों अभिभावकों को सवेतन अभिभावक अवकाश दिया जाता है.
इस सूचकांक में सबसे अच्छे स्कोर वाले देश जापान में माता और पिता दोनों को 300 दिनों का सवेतन पैतृक अवकाश दिया जाता है.
यूपी में वाल्मीकि समाज की शादी में 60 पुलिसवालों की तैनाती का पूरा मामला क्या है- ग्राउंड रिपोर्ट
महिला उद्यमी
उद्यम के क्षेत्र में महिलाएं संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को बढ़ाने में एक उत्प्रेरक के रूप में काम करती हैं.
कुछ संकेतक किसी महिला की कारोबार चलाने की क्षमता को या तो बढ़ा सकते हैं या तोड़ सकते हैं, इनमें कॉन्ट्रैक्ट साइन करने में किसी भेदभाव का ना होना, व्यापार को पंजीकृत कराना और बैंक खाता ऐसे ही खुलवा लेना जैसे पुरुष खुलवाते हैं, शामिल है.
भारत का क़ानून इन मामलों में महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं करता है, हालांकि क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो लैंगिक आधार पर क़र्ज़ लेने में भेदभाव को रोकता हो. भारत इस दिशा में और बेहतर कर सकता है.
जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के डाटा दर्शाता है कि, भारत में सिर्फ़ 2.8 प्रतिशत फ़र्मों में ही महिलाओं का मालिकाना हक़ है.
गुजरात का वो 'अंधेरा' गांव जहां आज़ादी के 75 साल बाद भी नहीं आई बिजली
एसटीईएम में भारतीय महिलाएं
लैंगिक बराबरी पर जब बात होती है तो एक और विषय पर चर्चा होती है.
ये है एसटीईएम यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथेमेटिक्स के क्षेत्र में महिलाओं की मौजूदगी.
भारत में महिला एसटीईएम स्नातकों की दर 42.7 प्रतिशत है जो अधिकतर विकसित देशों से भी ज़्यादा है.
वहीं उपलब्ध डेटा के मुताबिक़ सबसे ज़्यादा महिला एसटीईएम स्नातक अल्जीरिया मे हैं जिसकी दर 55.47 प्रतिशत है.
यहां एक अंतर्विरोध है एसटीईएम क्षेत्रों में महिलाओं का रोज़गार. वैश्विक स्तर पर इन क्षेत्रों में महिलाओं की मौजूदगी सिर्फ़ 19.9 प्रतिशत है.
इस कम दर की एक वजह कार्यस्थल का माहौल है जो पुरुष केंद्रित है. इसके अलावा ये क्षेत्र कम समावेशी और लचीले हैं.
यही वजह है कि महिलाएं और कम प्रतिनिधित्व वाले अन्य समूह इस तरफ़ कम आकर्षित
...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

The Anokha showBy Anokha Ankit