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Vijay ka Marg Kaise Paye ( Audio book summary )


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अपना विश्लेषण करना ही जीत का रास्ता है
विजय के मनोविज्ञान को प्रयोग करना सीखें। कुछ लोग सुझाते हैं, 'हार की बात कभी मत करो। सबसे पहले अपनी और उसके कारणों परमहंस योगानंद का विश् आध्यात्मिक गुरु करो, उस अनुभव से लाभ उठाओ, और फिर उसके सम्पूर्ण विचार को मन से निकाल दो। जो कोशिश करता रहता है, और अंतर में अपराजित है, वही अनेक बार हार कर भी विजयी है। संसार चाहे उसे असफल मान भी ले, परन्तु उसने अपने मन में यदि हार नहीं मानी है, तो आज नहीं तो कल वो लक्ष्य जरूर पा लेगा।
लाखों लोग कभी खुद का विश्लेषण नहीं करते। मानसिक रूप से वे अपने वातावरण की फैक्ट्री के मैकेनिकल प्रोडक्ट होते हैं, नाश्ता,
दोपहर का खाना, रात का खाना, काम करना और सोना, मनोरंजन के लिए इधर-उधर जाना, बस इन्ही चीजों में उलझे हुए होते हैं। वे नहीं जानते कि ये क्या और क्यों तलाश रहे हैं, न ये जानते हैं कि क्यों उन्हें कभी पूर्ण प्रसन्नता और स्थायी संतुष्टि का एहसास नहीं होता। आत्म-विश्लेषण से बचकर, लोग वातावरण के मुताबिक रोबोट बने रहते हैं। सच्चा आत्म-विश्लेषण प्रगति की सबसे बड़ी कला है।
आपकी अंतरात्मा ही आपका न्यायाधीश होती है। अपने विचारों की पंच बनने दें और स्वयं प्रतिवादी बनें। प्रतिदिन अपने आप की यह परीक्षा लें और आप देखेंगे कि जितनी बार आप अपनी अंतरात्मा से दंडित होते हैं, जितनी बार स्वयं को अच्छा बनने की, अपने दिव्य स्वरूप के अनुसार व्यवहार करने की आज्ञा देते हैं और उसका पाल करते हैं। उतनी ही बार आप विजयी होते हैं। विजय का मार्ग कैसे
पाएँ किताब से साभार
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