Story Time, G Says Story

विजय ने बोला अभी एक बुढिया आई थी खाने को मांग रही थी मै तो अपने मोबाइल में आज की फोटो देख रहा


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ये कहानी के एक प्रसिद्ध माँ दक्षिणेस्वर कलि के एक मंदिर की यह मंदिर पूरी पिंडर घाटी में बहुत प्रसिद्ध है इस मंदिर में सभी लोगों की बहुत आस्था है अधिकतर स्थानीय लोग जब भी नौकरी से या बहार से घर लौटे हैं तो माँ कलि के दर्शन करने के लिए जरूर जाते हैं
ऐसे ही एक दिन जब मैं अपने गाँव सूना लोटा तो मेरे साथ मेरे कुछ मित्र भी घुमने के लिए आये थे मुझे अपना गाँव और यह इलाका बहुत पसंद है जैसे ही कर्णप्रयाग से पिंडर घाटी के और गाडी चलती है पूरा का पूरा वातावरण ही बदल जाता है मौसम बहुत ही खुशनुमा हो जाता है चरों और हरियाली और साथ सड़क के उलटे हाथ पर कल कल बहती अलकनंदा की एक सहायक नदी पिंडर यह पिंडर नदी पिथोरागढ़ से पिंडारी ग्लेशियर से निकल कर करन्प्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलती है
वह जून महीने का आरंभ था हम 3 दोस्त मै विजय और कार्तिक अपनी कार से देहरादून से सुबह 5 बजे चले थे और पहाड़ी रस्ते का आनंद लेते ही लगभग 2 बजे थराली बाज़ार पहुँच गए थे कार्तिक के पिता नहीं है उसकी माँ ने ही बहुत महनत करके उसे पाला है कार्तिक का बचपन गरीबी में गुजरा है वह चाहता है की बहतु सारे पैसे कामा कर अपनी माँ को पूरा विश्व घुमाये और उसे वह हर सुख और सुविधा दे सके इसलिए वह काफी समय से विदेश में नौकरी करने का सपना पाले हुए था और लगभग 2.5 साल से उसके लिए कठिन परिश्रम कर रहा था विजय फोटोग्राफी में B tech engener था और मुंबई में एक बहुत अच्छी फिल्म कंपनी में काम कर रहा था विजय पहले से ही संपन्न परिवार से है और हमेसा मस्त रहता है उसका सपना फिल्म इंडस्ट्री में फिल्म डायरेक्शन के फील्ड में अपना नाम कमाना है
मेरा गाँव थराली से लगभग 1.5 किलोमीटर की पैदल दुरी पर हैं जब हम पैदल गाँव पहुंचे तो वहां मेरे ताओजी का बेटा प्रेम चन्द्र भाई और अन्य सम्बन्धी हमारा इन्तेजार कर रहे थे प्रेम चन्द्र बहुमुखी प्रतिभा का धनि है वह एक बहुत ही पारंगत लोक गीत लोक न्रत्य और कई वाद्य यंत्रों को पेर्फेक्टेली बजा लेता है वह पूजा पाठ में भी बहुत रूचि रखता है पूरे इलाके में यदि कभी भी रामलीला का आयोजन होता था तो प्रेम उसे आयोजित न करवा रहा हो यह हो ही नहीं सकता था उसदिन आराम करने के बाद प्रेम ने मुझसे पुछा की भाई बहुत दिनों बाद घर लोटे हो आपका क्या विचार है तब मैंने उसे बताया की सबसे पहले माँ कालि के मंदिर जाने है फिर बाकि जगह घूमने का प्लान फिर बनायेंगे
तभी कार्तिक बोला अरे तुम लोग भी किस अन्धविश्वास में जीते हो
जो लोग मंदिर नहीं जाते क्या भगवन उनसे खुश नहीं होते क्या
पूरा अमेरिका और यूरोप मंदिर नहीं जाता तो क्या वो खुश नहीं है
वो तो हमसे ज्याद एडवांस है और लगभग हमसे 150 साल आगे जी रहे हैं
कार्तिक और विजय एक दुसरे के विचारों से सहमत थे
मैंने कहा कोई बात नहीं हम माँ के दर्शन के लिए जायेगे और तुम पिकनिक मनाने चलो
खाना वहीँ बनायेंगे
सभी मेरी बात से सहमत थे
वह मंदिर हमारे गाँव से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी के ऊपर विद्मन है 10 किलोमीटर तो कार से जा सकते थे पर बाकि का 7 किलोमीटर पैदल और खड़ी चढ़ाई थी
मैंने साथ के लिए अपने ताऊजी जी के बेटे प्रेमचन्द्र को भी साथ ले लिया वो उस जगह से बहुत अच्छे से परिचित है और स्थानीय होने के कारण हर शुभ अवसर पर न जाने साल में कितनी ही बार माँ के दर्शन हेतु जाता रहता है
हम सभी सुबह नाहा धो कर तैयार थे और लगभग ११ बजे हम सभी अपने पूरे साजो सामन के साथ मंदिर के लिए चल दिए १० किलोमीटर हमने अपनी कार से सफ़र किया और कार को सुरक्षित स्थान पर पार्क कर के दुकान से पूजा का सामन ले लिया क्यूंकि उतनी ऊँचाई पर न तो कोई दुकान है न प्रशाद की खरीदने की कोई व्यवस्था
हमने अपने साथ कुछ गर्म कपडे और बरसाती भी रखी थी क्यूंकि यहाँ पर मौसम कब बदल जाये पता ही नहीं चलता और जून के मौसम को दिसम्बर के ठन्डे में बदलने में बस चंद मिनट लगते हैं
हमने अपनी चढ़ाई आरंभ की मेरे दोनों मित्र बहुत प्रस्सन थे
विजय और कार्तिक को फोटो लेने का बहुत शोक है
अभी हमने चलना शुरू ही किया था और वो दोनों फोटो लेने लगे
अरे ! विजय देख कितना अच्छा सीन है
विजय अपने साथ प्रोफेस्स्नल कैमरा साथ लाया था और कार्तिक के पास अपना मोबाइल फ़ोन जो बहुत ही अच्छी फोटो खेंचता था
अरे कार्तिक वो देख कितना अच्छा पीले रंग का जंगली फूल
इस फूल को फुन्य्ली कहते हैं प्रेमचन्द्र ने कहा
अरे भय्या आप जब ऊपर मंदिर के प्रांगन में पहुंचोगे न तब देखना वहां से हिमालय के बर्फ के पहाड़
पूरी
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Story Time, G Says StoryBy Dheeraj Deorari