Stories of Vikram Betaal विक्रम बेताल की कहानियाँ

विक्रम बेताल : आरंभ की कहानी, Vikram Betal : Aarambh ki kahani


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बेताल पचीसी की आरंभिक कहानी

बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम के एक राजा राज करते थे। उनकी चार रानियाँ तथा छ: लड़के थे। सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। उसी में से एक विक्रम थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। राजा शंख बड़ा विलासी प्रवृत्ति का था। उसका मन राज-काज में नही लगता था। उसके विलासिता के कारण राज्य की स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होने लगी। राजकोष घटने लगा। दुश्मनों की नजरें राज्य पर पड़ने लगी। प्रजा के साथ ही सभी मंत्रीगण चाहते थे कि विक्रम राजा बने। विक्रम से भी राज्य की दुर्दशा देखी नही जाती थी। सभी लोग विक्रम के साथ थे।

इसके बाद की कहानी सुनिए इस पॉडकास्ट मे…….

राजा विक्रम जब अपने राजी वापिस लौटे उसके बाद की कहानी कुछ यूँ है…. भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया। आधी रात का समय था। जब वह नगर में घुसने लगा तो देव ने उसे रोका। राजा ने कहा, “मैं विक्रम हूँ। यह मेरा राज है। तुम रोकने वाले कौन होते हो?” देव बोला, “मुझे राजा इन्द्र ने इस नगर की चौकसी के लिए भेजा है। तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो आओ, पहले मुझसे लड़ो क्योंकि सिर्फ विक्रम ही मुझे हरा सकता हैं।” दोनों में लड़ाई हुई। राजा ने ज़रा-सी देर में देव को पछाड़ दिया। तब देव बोला, “हे राजन्! तुमने मुझे हरा दिया। मैं तुम्हें जीवन-दान देता हूँ।”

इसके बाद देव ने एक कथा कहीं, “राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के। तुम यहाँ का राज करते हो, तेली पाताल में राज करता था और साथ ही वह महान साधक भी था। आपसी शत्रुता तथा लोभ के कारण कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर श्मशान में पिशाच बना पीपल के पेड़ से लटका दिया है। अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है। उससे सावधान रहना।” इतना कहकर देव चला गया और राजा महल में आ गया। राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई। नगर में आनन्द मनाया गया। विक्रम फिर राज करने लगा।

कहानी के आगे का हिस्सा पॉडकास्ट मे सुनिए…..फिर

राजा ने सोचा, हो-न-हो, यह वही योगी है, जिसकी बात देव ने बतायी थी। पेड़ पर रस्सी से बँधा मुर्दा लटक रहा था। राजा पेड़ पर चढ़ गया और तलवार से रस्सी काट दी। मुर्दा नीचे गिर पड़ा और दहाड़ मार-मार कर रोने लगा। विक्रम ने नीचे आकर पूछा, “तू कौन है?” विक्रम का इतना कहना था कि वह मुर्दा खिलखिलाकर हँस पड़ा। विक्रम को बड़ा अचरज हुआ। तभी वह मुर्दा फिर पेड़ पर जा लटका। विक्रम फिर चढ़कर ऊपर गया और रस्सी काटते ही, मुर्दे को बगल में दबा, नीचे आया। बोला, “बता, तू कौन है?” मुर्दा चुप रहा। तब विक्रम ने उसे एक चादर में बाँधा और योगी के पास ले चला। रास्ते में वह मुर्दा बोला, “मैं बेताल हूँ। तू कौन है और मुझे कहाँ ले जा रहा है?” विक्रम ने कहा, “मेरा नाम विक्रम है। मैं धारा नगरी का राजा हूँ। मैं तुझे योगी के पास ले जा रहा हूँ।” बेताल बोला, “मैं एक शर्त पर चलूँगा। अगर तू रास्ते में बोलेगा तो मैं लौटकर फिर पेड़ पर जा लटकूँगा।” विक्रम ने उसकी बात मान ली। फिर बेताल बोला, “पण्डित, चतुर और ज्ञानी, इनके दिन अच्छी-अच्छी बातों में बीतते हैं, जबकि मूर्खों के दिन कलह और नींद में। अच्छा होगा कि हमारी राह भली बातों की चर्चा में बीत जाये। मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ लेकिन तुम हु-हाँ भी नहीं करना न ही कोई प्रश्न।” इसके बाद बेताल ने अपनी कहानी आरंभ की और दोस्तों यही से बैताल पच्चीसी की कहानी शुरू होती हैं।
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